Wednesday 30 January 2019

Concerns to Indian Currency

हेलो दोस्तो , आज हम एक ऐसे टॉपिक के बारे में बात कर रहे है जो शायद ही किसी इकोनॉमिस्ट ने उठाया हो।
जैसा कि हम सब जानते है कि डॉलर एक डोमिनेट करंसी है और ज्यादातर देश इसे लेना पसंद करते है ।लेकिन समस्या ये नहीं है समस्या तो अपनी करंसी में हो रखी है और जिस पर समय रहते ध्यान नहीं दिया तो भविष्य में ये एक विकराल रूप ले लेगी और हम इसके जिम्मेदार होंगे ।
यहां समस्या एक्सचेंज रेट से नहीं है , समस्या है तो अपनी खुद की वैल्यू से ।
आप जानते है कि एक समय था जब 1 रूपए में आज के समतुल्य 1000 से 2000 या ज्यादा रुपए का सामान या सर्विसेज आ जाती है । क्या आपको नहीं लगता ये एक समस्या है ?
ये एक ऐसी समस्या है जिस पर किसी का ध्यान नहीं । मैं आपको बता दू ये तो बस शुरुआत है करंसी फेल्योर की ।
अमेरिका में आज भी सेंट्स चलते है पर इंडिया में बैंक के अलावा पैसे कहीं नहीं चलते । 99 पैसे अपना वजूद खो चुके है डोमेस्टिक मार्केट में।
धीरे धीरे  1 रूपया भी बाहर हो जाएगा डोमेस्टिक मार्केट से और फिर 10 फिर 50 फिर 100 फिर 200 फिर 500 और फिर 2000।
ये जरूरी नहीं है कि ये सब आज ही हो जाएगा लेकिन ये भविष्य में जरूर होगा अगर हमने समय रहते इस बारे में नहीं सोचा । वेंजुला , जिम्बावे, सोमालिया और भी कई देशों ने ये देख लिया । ये छोटे देश थे और इनकी इकॉनमी कुछ ही प्रोडक्ट्स पर डिपेंड थी इसीलिए उनकी करंसी का devalue
जल्दी हो गया । यहां मैं आपको बता दू की मैंने अवमूल्यन शब्द का प्रयोग नहीं किया जिसका इंग्लिश अनुवाद depreciation 
होता है । क्युकी depreciation
आपका एक्सचेंज रेट से डायरेक्टली रिलेटेड है लेकिन एक्सचेंज रेट और उसकी वैल्यू में फर्क होता है । इसे आप ऐसे समझ सकते है कि आप कितने सेंट्स में एक दर्जन केले ले सकते है और कितने रुपयों में एक दर्जन केले ले सकते है । यहां आपको पता ही होगा कि अमेरिकन डॉलर के पार्ट होते है सेंट।
धीरे धीरे consumables
की वैल्यू इंक्रीज होती जाएगी और करंसी की वैल्यू डिक्रीज होती जाएगी। यहां कंसुबल्स का मतलब सभी फिजिकल चीजो से है क्युकी लोंग रन में सभी वस्तुएं कंसुमाबल्स बन जाती है ।
आप इसे इस तरह से समझ सकते है कि जो वस्तु आज  100 रुपए की है वो सन 2050 में कितने की आएगी ।
इसके लिए आप चाहे मशीन का एग्जाम्पल ले या किसी खाने कि वस्तु का ।
या आप इसे उल्टा भी समझ सकते है कि 1 दर्जन केले आज भी 12 केले होंगे और सन 2050 में भी लेकिन आज अगर आप 50 रुपए दर्जन ले रहे हो शायद 2050 में 2050 रूपए दर्जन ही मिले।
यहां मोटा मोटा दो कारकों को ज़िम्मेदार माना जा सकता है जैसे कि डिमांड तो बढ़ती रहेगी क्युकी जनसंखया बढ़ती जा रही है लेकिन रिसोर्सेज उतने ही रहते है या उस अनुपात में नहीं बढ़ रहे जिस अनुपात में इनको बढ़ना चाहिए ।

यहां मैं आपको बता दू कि अमेरिका पर दूसरे देशों की तुलना में  बहुत कम फर्क पड़ने वाला है क्युकी हमने बाकी दुनिया ने ऐसा मेकनासिम उसे तैयार करके दिया है कि उसका प्रभाव अमेरिका पर अंत में पड़ेगा । यहां और भी देश है जिनकी हम एक लिस्ट तैयार कर सकते है की सबसे पहले किस देश पर इसका असर होगा और इसके बाद आने वाले कौनसे देश है । ये उन देशों की भौगोलिक और इकोनोमिक दशा पर निर्भर करेगा ।
जैसा कि पहले ही बता चुका हूं कि अमेरिकन डॉलर एक डोमिनेट करंसी है और इस डमिनंस के ज़िमेदारी बाकी देश है ।बाकी देशों ने इसे अपनी गुलक में डाल कर रखा है और अपनी करंसी में वो डिप्रेशट करवा रहे है ।इसका सीधे तौर पर अमेरिका की डोमेस्टिक मार्केट में currency's में devalue
होता है उसका असर दूसरी करंसिज ख़तम कर देती है ।
आप इसे इस तरह से समझ सकते है कि 1 दर्जन केले अमेरिका में अगर 50 सेंट के है और इनफ्लेशन के कारण केलो के दामों में बढ़ोतरी होती है तो अमेरिका में तो बेशक 60 सेंट परती दर्जन हो जाए लेकिन इंटरनेशनल मार्केट में वो 50 सेंट पर दर्जन ही रहेंगे क्युकी और देशों कि करंसी में जो depreciation
है वो इस इंपैक्ट को ख़तम कर देता है । अमेरिका को अगर 50 सेंट में एक दर्जन केला नहीं मिलता उसकी अपनी डोमेस्टिक मार्केट में तो वो 50 सेंट में इंटरनेशनल मार्केट से ले सकता है क्युकी 50 सेंट 60 रूपए के बराबर होगा और इंडिया में अगर केला 50 रुपए दर्जन था तो वो inflated
होकर 60 का जा सकता है , लेकिन क्या अमेरिका पर फर्क पड़ा? अगर उसे 50 सेंट वैल्यू की वस्तु अपनी डोमेस्टिक मार्केट से नहीं मिल रही तो वो उसे इंटरनेशनल मार्केट से उसी मूल्य पर ले सकता है ।
अब आप बताइए अगर अमेरिका पर फर्क नहीं पड़ रहा तो किन देशों पर इसका फर्क पढ़ रहा है ।
क्या इस बात से ये साबित नहीं होता कि अगर ये सिट्यूएशन ऐसे ही रही और हमने ध्यान नहीं दिया तो वो बात जो कहती है
लोग अपनी पीठ पर रूपया बांध कर मर जाएंगे लेकिन उपभोग का सामान न मांगे से मिलेगा ना उधार, सही साबित हो सकती है ।
बेशक ये दीर्घकालीन समस्या है लेकिन इसका निवारण जरूरी है ।

To be continued .......

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